बागेश्वर जिला आपदा प्रबंधन सोता रहा, शंभू नदी में बन गई 500 मीटर लंबी झील
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नदी तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं, डीएम विनीत कुमार बोले, पोकलैंड मशीन से खोलेंगे मुहाना
गुणानंद जखमोला, वरिष्ठ पत्रकार
देहरादून । पहाड़ क्यों बर्बाद हो रहा है, इसका अंदाजा बागेश्वर के कुंवारी गांव के नीचे बनी 500 मीटर लंबी और 50 मीटर चौड़ी झील से लगाया जा सकता है। यह झील शंभू नदी के प्रवाह रुकने से बनी है। इस नदी में मलबा आया और नदी का प्रवाह रोक दिया। सोचनीय बात यह है कि यह झील कोई एक दो दिन में नहंी बनी होगी। झील बनने में समय लगा होगा। लेकिन जिला आपदा प्रबंधन की टीम सोई रही। जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को भी खबर नहीं हुई।
इस झील का पता तब लगा जब नीरा के तहत यूसैक और पेयजल निगम के इंजीनियरों की एक टीम उस क्षेत्र में सर्वे करने गयी थी कि पिंडर का पानी किस तरह से कुमाऊं के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में ले जाया जाए। तब प्रशासन को होश आया और एक टीम भेजी गयी कि देखो, झील का क्या करें।
मैंने इस संबंध में बागेश्वर के डीएम विनीत कुमार से पूछा तो उन्होंने कहा कि नदी का प्रवाह पूरी तरह से नहीं रुका। हम दो-तीन दिन में मजदूरों और पोकलैंड मशीन के सहारे नदी में एकत्रित मलबे को हटा देंगे। जब मैंने पूछा कि जिला आपदा प्रबंधन को इस झील की जानकारी क्यों नहीं थी? तो डीएम ने गोलमोल जवाब दिया कि मई में कुछ जानकारी मिली थी। यदि मई में जानकारी मिली तो कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
मजेदार बात यह है कि प्रशासन को यह भी नहीं पता कि जहां झील बनी है, वहां पोकलैंड मशीन जा ही नहीं सकती। वहां सड़क तो है ही नहीं। सड़क विलुप गांव तक ही है। यानी प्रशासन के अफसरों को यह भी नहीं पता कि झील तक पहुंचने के लिए सड़क है भी या नहीं। झील स्थल सड़क से लगभग 200 मीटर की दूरी पर है और वह भी वर्टिकल है। यदि प्रशासन चाहेगा भी तो झील तक सड़क बनाने में 15 दिन लग जाएंगे। इस बीच 29 जून को मानसून की दस्तक है। कुंवारी गांव नीचे धंस रहा है। गांव के लोग जोखिम में हैं। जानकारों का कहना है कि झील के पानी से न सिर्फ कुंवारी गांव को खतरा है बल्कि यदि केदारनाथ या ऋषिगंगा आपदा जैसा हाल हुआ तो कर्णप्रयाग भी रामबाड़ा की तरह पूरी तरह से नष्ट हो जाएगा।
शासन-प्रशासन को झील पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए ताकि बड़ी आपदा से बचा जा सके।
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