उत्तराखंड

भारत जोड़ो यात्रा से क्यों चिंतित है भाजपा?

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अजीत द्विवेदी
कांग्रेस को भी अंदाजा नहीं रहा होगा कि उसकी भारत जोड़ो यात्रा को शुरुआत में ही इतना अच्छा रिस्पांस मिलेगा और यात्रा से भाजपा में चिंता व डर का भाव पैदा होगा। राहुल की कमान में हो रही इस यात्रा से सचमुच भाजपा को चिंता में डाला है। इस चिंता के कई कारण हैं। सबसे पहला कारण तो यह है कि भाजपा को लग रहा है कि इस यात्रा से कांग्रेस को पुनर्जीवन मिल सकता है। कांग्रेस रिवाइव हो सकती है। लगातार दो लोकसभा चुनाव की बड़ी हार और तीन दर्जन से ज्यादा विधानसभा चुनावों में मिली हार के साथ साथ पार्टी में हो रही टूट-फूट से कांग्रेस बिल्कुल पस्त है। भाजपा को लग रहा है कि एक और धक्के में कांग्रेस को ऐसे गहरे गड्ढे में गिराया जा सकता है, जहां से उसकी वापसी संभव नहीं होगी। भारत जोड़ो यात्रा से अगर कांग्रेस रिवाइव हो जाती है तो भाजपा का मकसद पूरा नहीं होगा।
भाजपा को कांग्रेस का रिवाइवल क्यों संभव लग रहा है, इसे समझना भी मुश्किल नहीं है। राजनीतिक इतिहास का ज्ञान रखने वाले हर व्यक्ति को इसके बारे में पता है। इसमें दो बातें ध्यान रखने की हैं। पहली यह कि कांग्रेस पार्टी हमेशा दक्षिण भारत से रिवाइव हुई है और दूसरी यह कि उत्तर भारत का कोई भी राजनीतिक नैरेटिव या लोकप्रिय राजनीतिक विमर्श दक्षिण भारत की राजनीति को ज्यादा प्रभावित नहीं करता है। नरेंद्र मोदी की परिघटना भी पिछले दो चुनावों में दक्षिण भारत में कोई असर नहीं डाल पाई। न उनका विकास का मॉडल चला और न गुजरात की प्रयोगशाला का मॉडल चला। कर्नाटक में भाजपा जरूर जीती लेकिन वह बीएस येदियुरप्पा के मॉडल के कारण जीती। तभी अगले साल होने वाले चुनाव से पहले येदियुरप्पा को भाजपा संसदीय बोर्ड का सदस्य बनाया गया है और पार्टी ने एक तरह से चुनाव उनके हवाले कर दिया है। सिर्फ मोदी ही नहीं जेपी और वीपी सिंह की परिघटना का भी दक्षिण भारत में कोई असर नहीं हुआ था।

जहां तक दक्षिण भारत से कांग्रेस को पुनर्जीवन मिलने की बात है तो वह कई चुनावों में प्रमाणित हुआ है। जयप्रकाश नारायण यानी जेपी के आंदोलन और इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस पूरे देश में हारी थी लेकिन दक्षिण भारत में उसने शानदार जीत दर्ज की थी। उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार, मध्य प्रदेश समूचे हिंदी पट्टी में कांग्रेस साफ हो गई थी। उसे 198 सीटों का नुकसान हुआ था। इसके बावजूद उसे 154 सीटें मिली थीं। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक की लगभग सभी सीटें कांग्रेस ने जीती थीं। केरल और तमिलनाडु में भी उसका प्रदर्शन अच्छा रहा था। पश्चिमी राज्यों महाराष्ट्र और गुजरात में भी कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा था। इसी तरह 1989 के चुनाव में बोफोर्स कांड और वीपी सिंह की लहर में कांग्रेस पूरे उत्तर भारत से साफ हो गई थी लेकिन दक्षिण के चार राज्यों- आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में उसने शानदार जीत दर्ज की थी। 1991 में जिस साल राजीव गांधी की हत्या हुई थी उस चुनाव में भी उत्तर भारत में कांग्रेस का सफाया हो गया था पर दक्षिण भारत ने इतनी सीटें दीं कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी। फिर 2004 और 2009 के चुनावों में भी दक्षिण भारत के कारण ही केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी। तभी भाजपा को चिंता है कि अगर दक्षिण में कांग्रेस रिवाइव हुई तो अगले चुनाव में उसकी बड़ी चुनौती होगी।

चिंता का दूसरा कारण कर्नाटक है। कर्नाटक में भाजपा की सरकार है और अगले साल मई में चुनाव होने वाले हैं। राज्य में पार्टी की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है तभी बीएस येदियुरप्पा को भ्रष्टाचार के आरोपों और 79 साल की उम्र के बावजूद भाजपा इतनी तरजीह दे रही है। इसके उलट कांग्रेस वहां बेहतर तैयारी कर रही है। राहुल की यात्रा 21 दिन तक कर्नाटक में रहेगी। अगर वे नैरेटिव बदलते हैं, पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भरते हैं और पार्टी को एकजुट होकर लडऩे के लिए तैयार करते हैं तो भाजपा को मुश्किल होगी। उसे अपनी राज्य सरकार बचानी है और उसके बाद लोकसभा की 25 जीती हुई सीटें बचानी हैं। चिंता का तीसरा कारण यह है कि अगर राहुल की भारत जोड़ो यात्रा को अच्छा रिस्पांस मिलता है और कांग्रेस के प्रति दिलचस्पी पैदा होती है तो कांग्रेस को अगले चुनाव से पहले सहयोगी मिलने में आसानी होगी। राजनीति का यह थम्ब रूल है कि अगर कोई पार्टी जमीन पर दिख रही है तो उसे सहयोगी मिलने में दिक्कत नहीं होती है। यात्रा सफल हुई तो कांग्रेस को सहयोगी भी मिलेंगे, कांग्रेस की अनदेखी बंद होगी और कांग्रेस अपनी शर्तों पर तालमेल करने में सक्षम होगी। यह भी भाजपा के लिए अप्रिय स्थिति होगी।

भाजपा की चिंता का चौथा कारण यह है कि इस यात्रा से राहुल गांधी की छवि बदल सकती है। उनके प्रति जो धारणा बनी है वह धारणा टूट सकती है। पिछले आठ-दस साल से निरंतर प्रचार के जरिए राहुल गांधी की ‘पप्पू’ वाली छवि बनाई गई है। अमित शाह अपने भाषणों में उनको राहुल बाबा कहते हैं। आजादी के बाद देश का कोई नेता नहीं है, जिसका इतना मजाक उड़ाया गया है, जितना राहुल गांधी का उड़ाया गया है। इसके बावजूद अगर राहुल गांधी थक हार कर या अपमानित होकर राजनीति से बाहर होने की बजाय डटे हुए हैं, उनकी स्पिरिट कमजोर नहीं हुई है और वे लगातार राजनीति कर रहे हैं तो तय मानें कि उनको खारिज नहीं किया जा सकेगा। देर-सबेर उनकी राजनीति सफल होगी। यह यात्रा उनकी राजनीति को सफल बनाने का मौका हो सकती है। चिंता का पांचवां कारण यह है कि अभी भले राहुल गांधी की यात्रा दक्षिण भारत में चल रही है और वहां कांग्रेस के रिवाइव होने से भाजपा पर कोई असर नहीं पडऩा है पर सोशल मीडिया के मौजूदा दौर में दक्षिण का मैसेज उत्तर पहुंचने में समय नहीं लगता है। केरल में चल रही उनकी यात्रा की चर्चा देश के दूसरे हिस्सों में भी हो रही है और इससे राहुल और कांग्रेस का माहौल वहां भी बन सकता है। एक और कारण भी राजनीतिक इतिहास से जुड़ा है और वह ये है कि इस तरह की राजनीतिक यात्राएं हमेशा सफल हुई हैं और जिस मकसद को लेकर यात्राएं हुई हैं वो मकसद पूरा हुआ है।

सो, ये कारण हैं, जिनकी वजह से भाजपा को राहुल की भारत जोड़ो यात्रा से चिंता हुई है और इस चिंता में भाजपा के नेता लगातार राहुल को निशाना बनाने लगे हैं। भाजपा में इधर उधर से भर्ती किए गए प्रवक्ताओं व टेलीविजन वक्ताओं, प्रतिबद्ध एंकर व पत्रकार, सोशल मीडिया के फ्रीलांस लड़ाके और भाजपा के दिग्गज नेता सब राहुल पर हमला कर रहे हैं। उनकी टीशर्ट और जूतों का मुद्दा उठाया जा रहा है। इससे लग रहा है कि, जो भाजपा अब तक उनका मजाक उड़ा रही थी वह अब उनसे गंभीरता से लड़ रही है। यह अपने आप में एक बड़ी जीत है।



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