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राष्ट्रपति चुनाव से पहले विपक्ष में पड़ी फूट, उपराष्ट्रपति चुनाव में अपने फैसले से चौंका सकती है बीजेपी

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नई दिल्ली । केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद अक्सर विपक्षी एकता को लेकर सवाल खड़े होते हैं। हालांकि यह सवाल मुख्यत लोकसभा चुनाव के लिए होता है कि पीएम मोदी के सामने कौन। विपक्ष की ओर से कई बार कोशिश की जाती है कि विपक्ष एकजुट दिखे। हालांकि ऐसा हो नहीं पाया। लोकसभा चुनाव में भी नहीं हो पाया और इस बार राष्ट्रपति चुनाव में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है। राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के सामने विपक्ष ने यशवंत सिन्हा के तौर अपना उम्मीदवार तो उतारा है लेकिन समर्थन को लेकर कई दल पीछे हट रहे हैं। पहले उम्मीदवार चयन को लेकर विपक्ष की ओर से जो नाम सुझाए गए उनमें से बारी-बारी से सबने असमर्थता जता दी। आखिरकार यशवंत सिन्हा के नाम पर रजामंदी हुई। लेकिन जैसे- जैसे चुनाव की तारीख करीब आ रही है उनका समर्थन बढ़ने की बजाय घटता ही जा रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि राष्ट्रपति चुनाव से पहले विपक्षी एकता में जो फूट पड़ी है उसके बाद क्या विपक्ष उपराष्ट्रपति के चुनाव में उम्मीदवार खड़ा करेगा। या बीजेपी को इस चुनाव में वॉकओवर मिलेगा।

राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष की ओर से पहले कोई उम्मीदवार बनने को राजी नहीं हो रहा था। एक- एक करके जो नाम सामने आ रहे थे वो भी मना करते जा रहे थे। आखिरकार यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाया गया। आधी लड़ाई विपक्ष नाम तय करने में ही हार चुका था लेकिन आगे ऐसा होगा इसकी उम्मीद कम की गई थी। वहीं बीजेपी ने द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाकर विपक्ष की लड़ाई को और भी कमजोर कर दिया। यूपी समेत कई राज्यों से पहले छोटे दलों ने यशवंत सिन्हा की बजाय द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने की बात कही। इसमें अधिकांश ऐसे दल हैं जो राज्यों में बीजेपी के साथ न होकर विपक्ष के साथ हैं। हालांकि विपक्ष को बड़ा झटका कल लगा जब उद्धव ठाकरे की ओर से एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के समर्थन का ऐलान किया गया।

वहीं झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन भी एनडीए उम्मीदवार का विरोध नहीं कर पा रहे हैं। सबसे हैरानी तो उस वक्त हुई जब यशवंत सिन्हा को प. बंगाल में प्रचार करने से ही मना कर दिया गया। जबकि ममता बनर्जी ने ही राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष की अगुवाई की थी। ममता बनर्जी ने कहा कि बीजेपी ने यदि अपने राष्ट्रपति उम्मीदवार की घोषणा पहले कर दी होती तो उस पर सर्वसम्मति बन सकती थी। अब वो मजबूर हैं कि चाहकर भी द्रौपदी मुर्मू का समर्थन नहीं कर पाएंगी। मजबूरी सिर्फ ममता बनर्जी के सामने नहीं और भी कई दल इसमें शामिल हैं। 18 जुलाई को राष्ट्रपति का चुनाव है और उससे पहले विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन दिनोंदिन बढ़ने की बजाय घटता जा रहा है।

क्या अब उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष हो पाएगा एकजुट
उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 19 जुलाई है और देखा जाए तो सिर्फ 6 दिन बाकी हैं। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की ओर से उम्मीदवार घोषित नहीं किया गया है। सत्ता पक्ष विपक्ष के निर्णय के इंतजार में है। वहीं राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की स्थिति को देखकर उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए मंथन जारी है। कांग्रेस की ओर से इस बार विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस की कोशिश है कि राष्ट्रपति चुनाव जैसा हाल उपराष्ट्रपति के चुनाव में न हो। कुछ दिनों पहले ऐसी चर्चा थी कि विपक्ष की ओर से साउथ का कोई कैंडिडेट बनाया जा सकता है। हालांकि यह चर्चा तब थी जब शिवसेना और दूसरे दल तब तक विपक्ष के साथ थे। राष्ट्रपति चुनाव के मुकाबले उपराष्ट्रपति का चुनाव विपक्ष के लिए कहीं अधिक मुश्किल है।

वहीं राजनीतिक गलियारों में एक दूसरी चर्चा यह भी शुरू है कि विपक्ष की ओर से यह कहा जाएगा कि सत्ता पक्ष पहले नाम की घोषणा करे। या फिर सत्ता पक्ष की ओर से उपराष्ट्रपति उम्मीदवार के नाम की रायशुमारी के लिए कोई बात रखी जाती है तो विपक्ष उसका समर्थन कर दे। यह एक विपक्ष के लिए रास्ता हो सकता है, हालांकि यह सत्ता पक्ष के उम्मीदवार पर काफी कुछ तय होगा। उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। नामांकन पत्र भरने की आखिरी तारीख 19 जुलाई और नाम वापस लेने की आखिरी तारीख 22 जुलाई है। ऐसे में यदि एक से अधिक उम्मीदवार चुनावी मैदान में रहे तो 6 अगस्त को चुनाव होगा और इसी दिन नतीजों की भी घोषणा कर दी जाएगी। लोकसभा और राज्यसभा के सांसद उपराष्ट्रपति चुनाव में वोट देने के पात्र होते हैं और संख्या बल के लिहाज से एनडीए उम्मीदवार का जीतना तय माना जा रहा है।

उपराष्ट्रपति चुनाव में अपने फैसले से चौंका सकती है बीजेपी
देश के मौजूदा उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू का कार्यकाल 10 अगस्त को समाप्त हो रहा है और एनडीए की ओर से कौन उम्मीदवार होगा इसको लेकर कई नामों पर चर्चा शुरू है। 2014 केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद कई चौंकाने वाले फैसले हुए हैं। चर्चा इस बात की भी शुरू है कि उपराष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी की ओर से ऐसा फैसला हो जो पहले उपराष्ट्रपति पद के लिए न हुआ हो। चर्चा इस बात की भी है कि बीजेपी देश को पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाने के बाद किसी महिला को ही उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बना दे। यदि एनडीए की ओर से ऐसा फैसला होता है तो वैसा हो जाएगा जो पहले कभी नहीं हुआ। अब तक देश में कोई महिला उपराष्ट्रपति नहीं चुनी गई हैं। महिला उपराष्ट्रपति के साथ ही देश में अब तक कोई सिख उपराष्ट्रपति भी नहीं रहा है। ऐसे में इस बात के भी कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी किसी सिख चेहरे पर दांव लगा सकती है। बीजेपी का फोकस इस वक्त दक्षिण के राज्यों पर है। हाल ही में कुछ ऐसे फैसले हुए जिनको देखकर कहा जा सकता है कि बीजेपी इस ओर गंभीरता से आगे बढ़ रही है। बीजेपी की ओर से जल्द नाम की घोषणा की जाएगी लेकिन फिलहाल जिन नामों पर चर्चा हो रही है उसमें मुख्तार अब्बास नकवी, आरिफ मोहम्मद खान, नजमा हेपतुल्ला, आनंदीबेन पटेल, बीएस येदियुरप्पा, कैप्टन अमरिंदर सिंह शामिल हैं।



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