राहुल को भगवान न बनाएं
अजीत द्विवेदी
राहुल गांधी जब से भारत जोड़ो यात्रा पर निकले हैं तब से कांग्रेस के नेता उनको भगवान बनाने में लगे हैं। कांग्रेस की यात्रा को दक्षिण भारत के सभी राज्यों में अच्छा रिस्पांस मिला है। लोग यात्रा से जुड़ रहे हैं और सोशल मीडिया के जरिए देश भर में भी इससे अच्छा मैसेज जा रहा है। एक नेता के तौर पर राहुल गांधी की छवि भी बेहतर हो रही है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उनको भगवान बनाया जाने लगे। उनकी तुलना देश के महापुरुषों से भी हो रही है। महात्मा गांधी के दांडी मार्च से लेकर विनोबा भावे की भूदान यात्रा और चंद्रशेखर की भारत यात्रा तक से इसकी तुलना हो रही है। यह कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी दोनों के लिए अच्छी बात है। लेकिन कांग्रेस के नेता उनको भगवान बना कर या भगवानों से उनकी तुलना करके उनका और कांग्रेस दोनों का नुकसान कर रहे हैं। वे कांग्रेस को उस राजनीति की ओर ले जा रहे हैं, जिसमें कांग्रेस बहुत अच्छी खिलाड़ी नहीं है।
पिछले दिनों कांग्रेस के कई नेताओं ने राहुल की तुलना अलग अलग भगवानों से की। मध्य प्रदेश के कांग्रेस विधायक कुणाल चौधरी ने उनकी तुलना भगवान राम से की। इसके बाद महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने कहा कि ‘र से राम और र से राहुल बनता है’। उन्होंने राहुल को सीधे भगवान राम बना दिया। इस बीच राजस्थान सरकार के मंत्री परसादी लाल मीणा ने राहुल की यात्रा की तुलना भगवान राम की लंका से अयोध्या तक की यात्रा से की। उन्होंने एक कदम आगे बढ़ कर कहा कि राहुल तो भगवान राम से भी लंबी यात्रा कर रहे हैं। राहुल गांधी के बहनोई रॉबर्ट वाड्रा ने पिछले दिनों कहा कि राहुल शिरडी के साई बाबा की तरह हैं। कुछ दिन पहले तक राहुल को भगवानों का भक्त बताया जाता था। वे खुद को शिवभक्त कहते थे और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी उनको शिवभक्त बताया है। लेकिन अब भक्त की बजाय उनको सीधे भगवान बनाया जाना लगा है।
असल में पिछले सात आठ साल में प्रचार के जरिए यह स्थापित किया गया है कि सेकुलर और लिबरल होना अच्छी बात नहीं है। सेकुलर और लिबरल होने का मतलब मुस्लिमपरस्त होना और देशविरोधी होना है। कांग्रेस इस नैरेटिव का शिकार हो गई है। तभी उसने कांग्रेस और राहुल गांधी की छवि बदलने के अनेक प्रयास किए। इसी प्रयास के तहत राहुल ने मानसरोवर से लेकर काशी विश्वनाथ तक की यात्रा की। अपने को जनेऊधारी और कौल ब्राह्मण बताया। कई जगह पूजा पाठ के लिए गए। लेकिन इसमें उनको ज्यादा कामयाबी नहीं मिली क्योंकि भाजपा और आम आदमी पार्टी पहले से इस स्पेस में राजनीति कर रहे थे और चाह कर भी कांग्रेस या राहुल गांधी ऐसी राजनीति नहीं कर सकते हैं। याद करें कैसे पिछले दिनों अरविंद केजरीवाल ने अपने को सीधे कृष्ण का अवतार बता दिया। पहले वे अपने को हनुमानभक्त कहते थे और अब उन्होंने कहा है कि वे जन्माष्टमी को पैदा हुए थे और उनका जन्म कंसों का नाश करने के लिए हुआ है। उन्होंने एक कदम आगे बढ़ कर यह सुझाव दे दिया है कि रुपए पर लक्ष्मी और गणेश की तस्वीर लगाई जाए। सोचें, क्या राहुल ऐसी राजनीति कर सकते हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी उनकी पार्टी के नेता विष्णु भगवान का अवतार बताते हैं। सबने देखा कि कैसे अयोध्या में मंदिर के शिलान्यास के समय उनकी तस्वीर भगवान राम से भी बड़ी बनाई गई थी और वे भगवान राम की उंगली पकड़ कर मंदिर में ले जा रहे थे। इसके बाद इस साल उत्तर प्रदेश के चुनाव में यह गाना खूब बजा कि ‘जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे’। पिछले दिनों जब वे दिवाली मनाने अयोध्या पहुंचे तो सारे विज्ञापनों और कटआउट्स से भगवान राम ही गायब हो गए। हर जगह उनकी और भगवा पहने योगी आदित्यनाथ की फोटो लगी थी। इससे पहले भी भाजपा की बड़ी नेता उमा भारती ने पार्टी के शीर्ष तीन नेताओं- अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को ब्रह्मा, विष्णु, महेश बताया था। ऐसी राजनीति भाजपा पहले से करती रही है और अब आम आदमी पार्टी भी उसी राजनीति में उतर गई है। लेकिन इस तरह की राजनीति कभी भी कांग्रेस की विचारधारा के अनुरूप नहीं रही है। इसलिए पार्टी को ऐसी राजनीति से बचने की जरूरत है।
भाजपा ऐसी राजनीति में रातों रात चैंपियन नहीं बनी है। दशकों से वह ऐसी ही राजनीति कर रही है। धर्म, धार्मिक प्रतीक और देवी-देवताओं के नाम पर भाजपा ने राजनीति की है और सफलता भी हासिल की है। इसलिए आम जनता के बीच वह इस राजनीति के एकमात्र या सर्वोच्च प्रतिनिधि के तौर पर स्थापित हुई है। आम आदमी पार्टी भी शुरू से ही ऐसी राजनीति कर रही है। हिंदुत्व और राष्ट्रवाद उसकी राजनीति का कोर तत्व रहा है। अन्ना हजारे के नेतृत्व में हुए भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के समय से ही अरविंद केजरीवाल की विचारधारा का यह पक्ष उजागर हो गया था। इसके बरक्स कांग्रेस पार्टी आजादी से पहले आजादी के महान मूल्यों और महात्मा गांधी की विचारधारा पर चलती थी और आजादी के बाद संविधान के मूल्यों को अपनाया। यानी स्वतंत्रता, समानता, धर्मनिरपेक्षता, उदारता और मिश्रित समाजवाद की आर्थिक नीतियों को कांग्रेस ने अपनाया। कांग्रेस के हर नेता की छवि इन्हीं विचारों के ईर्द-गिर्द राजनीति करने से निखरी है। राहुल भी इन्हीं विचारों के प्रतिनिधि हैं और ध्यान रखें ये ही विचार हैं, जो लोकतंत्र की बुनियाद हैं। कांग्रेस कैसे इस बुनियाद को छोड़ सकती है?
कांग्रेस हो या राहुल गांधी दोनों देश के महापुरुषों के साथ साथ महान धार्मिक चरित्रों से प्रेरणा ले सकते हैं। उनके आदर्शों को अपनाने की बात कर सकते हैं। लेकिन भगवानों से राहुल की तुलना करना या उनको भगवानों की तरह बताना कांग्रेस और राहुल दोनों के लिए नुकसानदेह हो सकता है। अभी उनकी एक उदार, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष नेता की छवि है लेकिन कांग्रेस नेताओं की बयानबाजी उनकी इस छवि को नुकसान कर सकती है। कांग्रेस लाख कोशिश कर ले तब भी वह राहुल की एक धार्मिक नेता वाली छवि नहीं बना सकती है और न कांग्रेस को धर्म की राजनीति करने वाली पार्टी बनाया जा सकता है। उलटे इस प्रयास में कांग्रेस अपनी राजनीतिक जमापूंजी भी गंवा सकती है। सो, कांग्रेस में बिल्कुल शीर्ष स्तर से यह संदेश सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं को दिया जाना चाहिए कि वे राहुल को भगवान न बनाएं और न कांग्रेस को देवी-देवताओं के नाम पर होने वाली राजनीति में घसीटें।