रुद्रप्रयाग के चाम्यूं गांव के साथ ही आसपास के कई गांव सड़क के इंतजार में हुए खाली
देहरादून। उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग के चाम्यूं गांव में कभी 25 परिवार थे लेकिन अब सिर्फ बुजुर्ग पति-पत्नी बचे हैं। कारण इस क्षेत्र के लिए 2004 में मंजूर दैजीमांडा-पौड़ीखाल सड़क अब तक नहीं बन पाई है। सड़क के इंतजार में चाम्यूं के तरह आसपास के कई और गांव खाली हो चुके हैं। पलायन रोकने के लिए उत्तराखंड में बाकायदा आयोग का गठन हुआ है। पलायन पर हर साल लंबी-चौड़ी रिपोर्ट जारी होती है लेकिन इस मर्ज के असल कारणों का इलाज नहीं हो रहा है। मसलन, रुद्रप्रयाग में दैजीमांडा-पौड़ीखाल सड़क मंजूरी के 18 साल बाद भी नहीं बन पाई है। पांच किमी लंबी सड़क के लिए 72 लाख रुपये जारी हुए थे। वन भूमि के नियमों के फेर में सड़क की फाइल एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर चक्कर काटती रही। जैसे-तैसे 2017 में मंजूरी मिली तो अक्तूबर में सड़क के लिए पहाड़ को काटने का काम शुरू हुआ। लेकिन, 2004 के 72 लाख रुपये अब कम पड़ गए। इतने पैसों में पांच में से सिर्फ सवा किमी तक ही पहाड़ की कटिंग हो पाई और काम बंद हो गया। बाद में लोक निर्माण विभाग ने जिला योजना व अन्य मदों में दो चरणों में करीब दो किमी कटिंग और की।
क्या कहना है गांववासियों का
सड़क के इंतजार में गांव या तो खाली हो चुके हैं या सिर्फ बुजुर्ग बचे हैं। पणधार में 30 परिवार थे लेकिन अब 12 ही बचे हैं। ऐसे ही कलेथ में 22 में से 10 ही परिवार रह गए हैं। रामपुर, मरगांव, सुनाऊं, पौड़ीखाल, निषणी, ढिगणी, ढमणी, कपलखील में भी ऐसी ही स्थिति है। लोगों को रोजमर्रा के सामान के लिए भी तीन किमी की खड़ी चढ़ाई तय कर खेड़ाखाल जाना पड़ता है। मरीजों को डंडी के सहारे उबड़-खाबड़ रास्ते से खांकरा लाया जाता है। बजट के अभाव में काम नहीं हो पाया। गांव तक सड़क पहुंचाने के लिए अभी दो किमी कटिंग और होनी है। इसके लिए दोबारा प्रस्ताव बनाया जाएगा। सड़क के इंतजार में मेरा जीवन गुजर गया। एक किलो चीनी के लिए तीन किमी खड़ी चढ़ाई नापकर खेड़ाखाल जाना पड़ता है। इसमें पूरा दिन लग जाता है। आज भी मानो हम आदिकाल में जी रहे हैं। सड़क न बनने से मैं और कई और लोग परिवारों के साथ गांव से पलायन कर चुके हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंक, डाकघर जैसी मूलभूत सुविधाएं भी गांव को नसीब नहीं हो पाई हैं।