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SCO सम्मेलन में भारत ने अमेरिका को दिए सख्त संदेश, चर्चा में रही मोदी-पुतिन की गर्मजोशी

SCO सम्मेलन में भारत ने अमेरिका को दिए सख्त संदेश, चर्चा में रही मोदी-पुतिन की गर्मजोशी

तियानजिन (चीन): चीन के तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन पर वैश्विक राजनीति की निगाहें टिकी रहीं। इस सम्मेलन की खास बात रही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच हुई गर्मजोशी भरी मुलाकात, जिसे दुनियाभर के मीडिया में प्रमुखता से कवर किया गया।

इस सम्मेलन की पृष्ठभूमि में अमेरिका की टैरिफ नीतियां, यूक्रेन युद्ध और वैश्विक शक्तियों के बदलते समीकरण जैसे मुद्दे प्रमुख रहे। वैश्विक मीडिया रिपोर्ट्स से संकेत मिलता है कि भारत ने इस मंच के जरिए अमेरिका को साफ संदेश दिए हैं कि वह अपनी विदेश नीति में आत्मनिर्भर है और बाहरी दबावों को स्वीकार नहीं करेगा।

भारत का अमेरिका को स्पष्ट संकेत

ब्रिटेन के प्रतिष्ठित अखबार द गार्जियन ने SCO को विरोधाभासों से भरा मंच बताते हुए लिखा कि इस मंच को भले ही नाटो की तरह सैन्य सहयोग से जोड़कर न देखा जाए, लेकिन कूटनीति में प्रतीकों की अहम भूमिका होती है। अखबार का मानना है कि मोदी, शी और पुतिन की साथ में दिख रही गर्मजोशी, अमेरिका के घटते प्रभाव का संकेत है।

द गार्जियन के मुताबिक भारत के संदेश साफ हैं:

  1. भारत कृषि क्षेत्र को अमेरिकी कंपनियों के लिए नहीं खोलेगा।

  2. भारत किससे और कितनी मात्रा में तेल खरीदेगा, इसका फैसला वह खुद करेगा।

  3. भारत किसी भी दबाव में नहीं झुकेगा, क्योंकि इससे उसकी कमजोरी उजागर होगी।

  4. अगर अमेरिका भारत की साझेदारी को गंभीरता से नहीं लेता, तो भारत अन्य विकल्पों की ओर रुख कर सकता है।

रशिया टुडे: भारत बाहरी आदेश नहीं मानेगा

रशिया टुडे ने लिखा कि रूस ने SCO में एक बार फिर मध्यस्थ की भूमिका निभाई, जिससे पश्चिमी देशों की भारत-चीन तनाव को भड़काने की कोशिशें विफल हो गईं। भारत की प्राथमिकता बहुपक्षीयता है और वह वैश्विक साउथ, ब्रिक्स और SCO जैसे मंचों के जरिए अपनी कूटनीतिक ताकत बढ़ा रहा है। लेख में यह भी कहा गया कि भारत व्यावहारिकता के साथ अमेरिका से टकराव से बचने की नीति अपनाता है, लेकिन साफ संकेत है कि वह “बाहरी आदेश नहीं मानेगा।”

न्यूयॉर्क टाइम्स: भारत के पास विकल्प हैं

न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप के रिश्तों में खटास उस समय आई जब ट्रंप ने भारत-पाक संघर्ष विराम का श्रेय लेने की कोशिश की और भारत ने इसका विरोध किया। इसके बाद रूस से तेल खरीदने पर अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ ने रिश्तों में और दरार ला दी। SCO सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी द्वारा पुतिन के साथ एक ही कार में यात्रा और गर्मजोशी से बातचीत करना एक रणनीतिक संदेश था कि “भारत के पास अमेरिका के अलावा भी विकल्प हैं।”

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट: जगह का चुनाव भी रणनीति

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने लिखा कि मोदी और पुतिन की द्विपक्षीय बैठक के लिए चीन को स्थल के रूप में चुनना भी अपने-आप में एक बड़ा संकेत है। सम्मेलन के दौरान साझा की गई तस्वीरें यह दिखाने के लिए काफी थीं कि दुनिया के दो सबसे अधिक जनसंख्या वाले देशों — भारत और चीन — के रिश्तों में गर्माहट लौट रही है।

ट्रंप प्रशासन के लिए एक चेतावनी

एससीओ सम्मेलन के जरिए भारत ने न केवल अपनी रणनीतिक स्थिति मजबूत की, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि वह केवल पश्चिमी गठबंधनों पर निर्भर नहीं है। अमेरिका को भारत के साथ रिश्तों में समानता और सम्मान का रवैया अपनाना होगा, अन्यथा भारत अपने हितों के अनुसार नई साझेदारियां कर सकता है।

SCO शिखर सम्मेलन ने यह साफ कर दिया कि भारत अब वैश्विक कूटनीति में न तो दबाव में है, न ही निर्भर। वह अपने हितों की रक्षा के लिए किसी भी दिशा में रणनीतिक साझेदारी करने को तैयार है। मोदी-पुतिन की मुलाकात और भारत के रुख ने यह स्पष्ट कर दिया कि आज की बहुध्रुवीय दुनिया में भारत एक स्वतंत्र, संतुलित और प्रभावशाली भूमिका निभा रहा है।